आज मैं लोहिया
रचनावली खंड 3 के एक बेहद चर्चित लेख ‘सत्ता पाने की योजनाबद्ध इच्छा शक्ति’
पर विस्तार से बात करूँगा. अपने इस लेख में अपनी तरफ से कुछ नहीं लिखुँगा बल्कि जो
लोहिया ने कहा है उसे ही व्याख्यायित करुंगा. लोहिया ने अपने इस लेख में
समाजवादियों के सत्ता पाने के रास्तें क्या हों? इस पर बहुत विस्तार व् सावधानी से
लिखा है.
1- लोहिया ने भारतीय राजनीति के पांच ठोस सिद्धान्त बताए -समाजवाद,
समता, विकेंद्रीकरण, अहिंसा और जनतंत्र . इसके बाद लोहिया प्रशिक्षण की बात करते
हुए प्रशिक्षण के लिए तीन गुण बतातें हैं – साहस, शील और निपुणता . इन तीन गुणों में वे साहस को सबसे ऊपर रखते हैं
. साहस के संदर्भ में वे लिखते हैं कि ‘साहस गुण को परिष्कृत करने और बढाने
के लिए 7 वर्ष की अवधि में समाजवादी दल के समिति सदस्यों को साल में 2 महीने जेल
में बिताने चाहिए और काउंसलरों को न्याय के लिए और गरीबी के खिलाफ जनांदोलन में कम
से कम एक बार भाग लेना चाहिए ......देश
में इतनी गरीबी है और इतने अन्याय होते रहते हैं कि जब तक उनके लिए
जिम्मेदार समाज और सरकार न बदले, तब तक साहसी लोग वर्ष के बारहों महीने जेल में
काट सकते हैं . इस बात का ख्याल रखते हुए कि 2 महीने जेल काटना कोई विलक्षण साहस का काम नहीं है
बल्कि साधारण और बहुत ही साधारण कर्तव्य है.’ अब इस दौर के समाजवाद का
झंडा उठाने वाले लोहिया के दावेदारों में क्या ये ‘साहस’ बचा रह गया है ?
क्या जनता की समस्याएँ ख़त्म हो चुकी हैं? क्या गरीबी ख़त्म हो चुकी है ? क्या देश
में सबकुछ ठीक चल रहा है ? देश में घटित
होने वाले तमाम जन मुद्दों पर आपकी घनघोर चुप्पी क्यों है ?
2- लोहिया कहते हैं कि ‘सत्ता पाने की समाजवाद की इच्छा अब काले
बादलों में ढकी नहीं रहनी चाहिए ....आगामी 7 वर्ष को मैं तैयारी के वर्ष के रूप
में देखता हूँ . इस अवधि में पार्टी को 3 हजार पदाधिकारी, 30 हजार समिति सदस्य 3
लाख काउंसलर और 30 लाख सदस्यों को प्रशिक्षित कर लेना चाहिए. इसी प्रशिक्षण से
विभिन्न विधानसभा सभाओं और लोकसभा के लिए
3 हजार विधायक तैयार किए जाएंगे जो राज्य और केंद्र की सरकारों के प्रभावकारी और
क्रन्तिकारी ढंग से चला सकेंगे’’ ....इस लेख की यह पहली बात है अब इसके
आलोक में आज के लोहिया के विरासत का दावा करने वाले समाजवादियों को परखें तो वो
जीरो से भी निचे ठहरते हैं. इस पार्टी में कभी प्रशिक्षण शिविर आयोजित ही नहीं
होता . एक अराजक भीड़ सत्ता के साथ इस पार्टी में आती है और झक्क सफ़ेद कपड़ों में
अपने नेता के लिए जवानी कुर्बान गैंग में तब्दील हो जाती है. विचार शून्यता इस कदर
है कि युवाओं की नई पौध कुछ ज्यादा हिन्दू
और मुसलमान हो गयी है। दक्षिण पंथी उग्र संगठनों और पार्टियों ने सपा के युवा कैडर
के एक हिस्से को अपने वैचारिकी की तरह का हिन्दू बना दिया है। आर्थिक रूप से सम्पन्न
हुए पिछड़े वर्ग के युवाओं में यह नशा तेजी से उभरा है। ये वही युवा हैं जो भगवा ओढ़
कर मंदिरों में घण्टा बजाते हैं, भगवत कथा
का पाठ या महीनों तक कीर्तन करते करवाते हैं। ये आज का वह पाखंडी युवा है जिसके
सभी अंगुलियों में कोई कष्ट हरण अंगूठी, कलाई में कलेवा बंधा
दिखेगा। इनकी वैचारिक शून्यता ने इन्हें घनघोर पाखंडी बना दिया है। ये धर्म का
अर्थ भी नही जानते। धर्म का अर्थ धारण करना होता है ढोंग करना नही। आप सब अपने
धर्म को मानों किसे समस्या है पर परम्परा
और रूढ़ि का, धर्म और ढकोसले का फर्क करना सीखो। तो सभी पार्टियों
में दक्षिणपंथ ने अपने वैचारिकी से घुसपैठ बनाई है। इसमें सपा तो घनघोर तरीके से
फंस गई है क्योंकि जैसे ही वह अल्पसंख्यक इशु उठाती है या उन्हें आगे करती है उसका ये दक्षिणपंथी
माइंडेड युवा रिएक्ट कर जाता है । जबकि लोहिया ने साफ़ कहा था – ‘ बिना डर
और लागलपेट के, समाजवादियों को मुसलमानों
के सवाल उठाने चाहिए.उनके कट्ठ्मुल्लापन की सहायता नहीं करनी चाहिए पर जो भी हिंदू
कहीं मुसलमानों से अलगाव का बर्ताव करे, उन्हें दोषी ठहराना चाहिए . महान
उद्धेश्यों के लिए तैयार रहना चाहिए. जिस
दल में वक्ती तौर पर अलोकप्रिय बनने का साहस नहीं होता वह कभी समाज परिवर्तन नहीं
कर सकता.’’
सुनील यादव
यायावर और चिंतक
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