सुनील
यादव
रवि की कविताएँ व्यक्ति के मन को न सिर्फ अंदर
तक भिगोती हैं बल्कि व्यक्ति मिजाज को संवेदनशील बना देती है.. आज के दौर में खत्म
हो रही व्यक्ति की संवेदशीलता की मर्सिया हैं रवि की कविताएँ. रवि अपनी कविताओं
में जिस दुनिया का सृजन करते हैं वह दुनिया बहुत ही मानवीय और अपरम्पार संभावनाओं
से युक्त है . वे मानव के कोमल भावनाओं के कवि हैं. उनकी कविताएँ सभ्यता विमर्श
करती हुई चलती हैं. इस सभ्यता विमर्श में स्त्री अस्मिता की बातें तो हैं ही हर
तरह से प्रताड़ित मानवीय सभ्यता के रक्षा के मूल्य भी हैं. रवि की कविताओं से
गुजरते हुए आपको प्रेम के तमाम सोपान नजर आएँगे, जवान धूप से बूढी धूप तक प्रेम के
परिपक्व और सूफियाने अंदाज के बीच उनकी कविताएँ तरुनाई के तमाम किस्से बयान करती
चलती हैं. रवि मूलतः गीतकार हैं इसीलिए उनकी कविताएँ हर पल गीत की शक्ल में ढल
जाने को बेकरार दिखती हैं. साहित्य और सिनेमा
के बीच तक उनकी कविताओं का रेंज बहुत बड़ा
है .
रवि की कविताएँ व्यक्ति के मन को न सिर्फ अंदर तक भिगोती हैं बल्कि व्यक्ति मिजाज को संवेदनशील बना देती है.. आज के दौर में खत्म हो रही व्यक्ति की संवेदशीलता की मर्सिया हैं रवि की कविताएँ. रवि अपनी कविताओं में जिस दुनिया का सृजन करते हैं वह दुनिया बहुत ही मानवीय और अपरम्पार संभावनाओं से युक्त है . वे मानव के कोमल भावनाओं के कवि हैं. उनकी कविताएँ सभ्यता विमर्श करती हुई चलती हैं. इस सभ्यता विमर्श में स्त्री अस्मिता की बातें तो हैं ही हर तरह से प्रताड़ित मानवीय सभ्यता के रक्षा के मूल्य भी हैं. रवि की कविताओं से गुजरते हुए आपको प्रेम के तमाम सोपान नजर आएँगे, जवान धूप से बूढी धूप तक प्रेम के परिपक्व और सूफियाने अंदाज के बीच उनकी कविताएँ तरुनाई के तमाम किस्से बयान करती चलती हैं. रवि मूलतः गीतकार हैं इसीलिए उनकी कविताएँ हर पल गीत की शक्ल में ढल जाने को बेकरार दिखती हैं. साहित्य और सिनेमा के बीच तक उनकी कविताओं का रेंज बहुत बड़ा है .
रवि सूक्ष्म और कोमल सवेद्नाओं के कवि हैं. लगातार असंवेदनशील हो रहे इस दौर
में रवि की कविता खरोंच अंदर तक झकझोरती है. जिस दौर में आदमी के जान की कीमत
जानवर के जान से कमतर हो गयी हो उस दौर में एक पत्ते के बिम्ब से जीवन के खरोंच का
स्केच बना देना ही तो रवि की कविताओं की ताकत है. रवि की कविताओं का बिम्ब विधान
अक्सर अपनी कविताओं में प्रकृति के बिम्ब चुनते हैं . प्रेम की विविध प्रसंगो को
प्रकृति के बिम्बों में उभार पाना एक मुश्किल काम है पर रवि ने इस मुश्किल काम को
बड़े आसानी से किया है. उनकी कविताओं के भीतर का जो जीवन राग है वह प्रकृति के
मानवीकरण के बाद और जीवंत हो उठता है. बूढी धूप कविता संग्रह में अलग अलग कविताएँ
भले हों पर उन कविताओं के भीतर एक लयात्मक एक रूपता है जो एक दूजे को जोडती चलती
है. इस तरह रवि प्रेम के एक मुक्कम कवि हैं.
जब दुनिया भर में कविता के खात्मे की घोषणा
होने लगी थी तो धर्मवीर भारती ने कहा था कि था कि ‘तुम्हें
मैं फिर नया विश्वास देता हूं ... कौन कहता है कि कविता मर गयी। आज फिर यह पूछा
जा रहा है। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सृजन का कोई भी अभिव्यक्त रूप मरता नहीं
है,
बस उसका फार्म बदलता है और फार्म के स्तर पर कविता का कोई विकल्प
नहीं है। रवि की कविताओं से गुजरते हुए बार बार यह अहसास होता चलता है कि मनुष्य
की संवेदनाओं की अभिव्यक्ति में कविता का कोई विकल्प नहीं है. वे
अपनी कविताओं में जीवन के राग को तलाशते चलते हैं. जिस तरह धनिए की गमक, महुए की
महुवाई गंध और आग पर पक रही महिया की सुगंध पुरे गाँव को मदहोस कर देती है ठीक
वैसे ही रवि की कविताएँ व्यक्ति के मन को न सिर्फ शांत और एकाग्र करती हैं बल्कि
उसे मदहोस करते हुए मनुष्यता के पैमाना पर खड़ा कर देती हैं.