Tuesday 8 September 2020

जनता का डाक्टर: जिसने विभेद से भरे हुए समाज का इलाज भी जरुरी समझा

 सुनील यादव 


डाक्टर शब्द का का नाम आते ही एक ऐसे प्रोफेसनल व्यक्ति का अक्स उभरता है जो खुद के लिए बना हो. चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सक की जनमित्र वाली छवि कहीं दिखती ही नहीं. जो डाक्टर थोड़ा सफल हो जाता है, वह अपना बड़ा सा हास्पिटल खोलकर पैसे गिनती की मशीन लगा लेता है. आर्थिक रूप से कमजोर लोग उसके निजी अस्पताल में जाने से डरते हैं. इसके बरक्स सरकारी अस्पतालों में जनमित्र डाक्टरों का अकाल सा है, ऐसा लगता है, जैसे डाक्टर को अपनी ड्यूटी निभाने के लिए रख दिया गया है. ऐसे ही दौर में एक डाक्टर की बात करने आज बैठा हूँ, जिनकी कहानी आपको यूटोपिया की तरह लग सकती है पर यह न सिर्फ वास्तविक है बल्कि गौरवान्वित करने वाली भी है.


उत्तर भारत के कुछ विख्यात ह्रदय रोग विशेषज्ञों में से एक विशेषज्ञ हैं प्रो. (डा) ओम शंकर. डा० ओम शंकर भारत के जाने माने बीएचयू मेडिकल कॉलेज में हृदय विभाग में प्रोफेसर हैं. वे दुनिया भर के मंचों पर अर्थात समय समय पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में विदेश जाते रहते हैं. उनकी मेहनत व् लगन ने उन्हें हृदय विशेषज्ञ के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है. बिहार के एक सम्पन्न परिवार में जन्में डा ओमशंकर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे. उन्होंने न सिर्फ मेडिकल प्रवेश परीक्षाएं टॉप की बल्कि अपने कोर्स वर्क में भी अव्वल स्थान हासिल करते रहे. सोशल जस्टिस की लड़ाई उनको परिवार से  संस्कार के रूप में मिला. समाज के दमित, कुचले हुए लोगों के साथ खड़े होने उनकी आवाज बन जाने की तड़प बचपन से ही उनके भीतर दिखने लगी थी. उनके विचारों को सुनकर ऐसा लगता है कि वे सिर्फ और सिर्फ जनता के लिए बने हैं. यही कारण रहा कि हृदय रोग का इतना बड़ा डाक्टर अपने को जनता के समर्पित कर दिया. डा ओम शंकर चाहते तो ‘आलीशान हृदय क्लीनिक/अस्पताल खोलकर या भारत के पंचसितारा प्राइवेट अस्पतालों के साथ जुड़कर करोड़ों रुपए हर साल कमाते. लेकिन डा ओम शंकर की प्राथमिकता में पैसा है ही नहीं उनकी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर जन सेवा जन कल्याण ही है.


 स्वास्थ्य क्रांति का नायक-

दुनिया भर में सैकड़ों हजारों तरह के मुद्दे पर आन्दोलन हुए क्रांतियाँ हुईं. लेकिन स्वास्थ्य को लेकर इस तरह का आन्दोलन दुनिया के इतिहास में नहीं दिखता जैसा डाक्टर ओम शंकर ने किया. भारत ही नहीं दुनिया में विरल डाक्टर ही मिलेंगे जिन्होंने जनता के स्वास्थ्य के लिए आन्दोलन चलाया हो. डॉ. ओमशंकर आईएमएस बीएचयू को एम्स का दर्जा दिलवाने के लिए आंदोलनरत हुए .अपने इसी बड़े और जरुरी आंदोलन के चलते वे निलंबित हो गए.  बीएचयू में एम्स की स्थापना के लिए उन्होंने आमरण अनशन किया. उन्होंने बीएचयू को एम्स का दर्जा दिलाने के लिए 15 दिन तक भूख हड़ताल की। इस दौरान उन्हें साजिश के तहत सस्पेंड करके जांच कमिटी बैठा दी गई। स्वास्थ्य के संदर्भ में यह भारत का इकलौता अदभुत आन्दोलन था जिसके नायक का नाम था ओम शंकर. डाक्टर ओम शंकर के इस आन्दोलन के दबाव में स्वास्थ्य जैसे जरुरी मुद्दे को राजनीतिक पार्टियों को अपने  घोषणा पत्र में जगह देना पड़ा. 


   वे ‘बीएचयू मांगे एम्स’ के नारे के साथ गाँव गाँव घूमते रहे. कई स्थानों पर सभाएं की . इनके आन्दोलन को व्यापक जन समर्थन मिला . इसी बीच उन्होंने अपना लोकप्रिय नारा दिया कि –सामान स्वास्थ्य व समान शिक्षा अधिकार की क्रांति के वगैर सभी  क्रांतियाँ  अधूरी हैं.’ इसी बनारस में साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र को जनता ने भारतेंदु की उपाधि दी थी. इसी बनारस की सरजमी पर जनता ने डाक्टर ओम शंकर को ‘जनता का डाक्टर’ की उपाधि से विभूषित किया. इसका सबसे बड़ा कारण था कि "राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति" व "राइट टू हेल्थ" जैसे परिवर्तनकारी मूलभूत मुद्दों के लिए लगातार आंदोलनरत डा० ओम शंकर, उपवास स्थल पर लोगों की चिकित्सा करते रहे. 

बीएचयू में एम्स की स्थापना को लेकर उनका तर्क बहुत महत्वपूर्ण था वे कहते हैं कि ‘सर सुंदर लाल चिकित्सालय व ट्रामा सेंटर में चिकित्सकीय सुविधाओं और चिकित्सकीय स्टाफ का पूरा सेटअप है। इसलिए यदि यहीं पर एम्स खोला जाएगा तो 500 करोड़ रुपये खर्चा आएगा और एम्स की सुविधा से पूर्वांचल के लोग जल्द ही लाभान्वित होने लगेंगे। जबकि किसी अन्य स्थान पर भूमि खोज कर उसका अधिग्रहण करने के बाद एम्स की स्थापना में लगभग तीन हजार करोड़ का खर्च आएगा और एक लंबा वक्त भी लगेगा।” जब डा ओम शंकर को भनक लगी की मेरे आन्दोलन के बाद जो एक आश्वासन मिला था वह टूटता सा दिख रहा है अर्थात एम्स गोरखपुर स्थान्तरित हो गया है तो उन्होंने फिर से अपनी मांग शुरू कर दी. डा ओमशंकर  गोरखपुर को एम्स मिलने पर खुशी तो जताई लेकिन काशी में भी एम्स को एक बार फिर जरूरी बताया। उन्होंने दलील दी कि ‘आइएमएस को एम्स बनाने से चार राज्यों के मरीजों को फायदा पहुंचेगा। उन्होंने ट्रामा सेंटर को ही एम्स बनाने पर जोर दिया . उन्होंने साफ साफ कहा कि केंद्र सरकार को यहां एम्स बनाने पर अधिक इंतजार नहीं करना पड़ेगा. कारण कि यहां पहले से ही बिल्डिंग तैयार है. नया एम्स खोलने में कम से कम दस वर्ष का इंतजार करना होगा. जबकि  यहां एम्स बनाने की घोषणा करने के तुरंत बाद से ही लोगों को सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगी. उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण तर्क दिया कि यहाँ  आइएमएस बीएचयू में अनुभवी चिकित्सकों की टीम भी है. डा. ओमशंकर के अनुसार यहां स्टेमसेल व बोनमैरो ट्रांसप्लांट सेंटर भी बन रहा है. यहां मरीजों को इलाज तो मिलेगा लेकिन सस्ता नहीं। एम्स होने से गरीब मरीजों का बेहद सस्ता इलाज संभव हो सकेगा.” इतना कुछ तर्क वितर्क करने के बाद भी सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो डा ओम शंकर ने बनारस स्थित प्रधानमंत्री जनसंपर्क कार्यालय में में ज्ञापन दिया. डाक्टर ओम शंकर निलंबन से डरने वाले व्यक्ति नहीं थे उन्होंने झुकने से मना कर दिया. एक लम्बे समय बाद कोर्ट और बीएचयू के स्टैंडिंग कमिटी के संयुक्त पहल से उनका निलंबन वापस हुआ. डा ओम शंकर ने अभी हार नहीं मानी है उन्होंने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री सहित कई बड़े नेताओं को पत्र लिख चुके हैं उनकी लड़ाई जारी है.


 अभी जब कोरोना का संकट हर तरफ गहराया हुआ है उस दौर में बीएचयू जैसे जनता का जीवन रेखा वाले अस्पतालों की ओपीडी बंद हो जाय तो समझ लीजिए कितने लोग इलाज के बिना मर जाएंगे. इस मुद्दे पर जनता का डाक्टर फिर आंदोलित हो उठा, उन्होंने ओपीडी खोलने के लिया आवाज उठाना शुरू किया. इसी वक्त उन्होंने एक स्लोगन दिया  "मदिरालय खुला परंतु अस्पतालें बंद क्यों"? यह स्लोगन खूब चर्चित हुआ. उन्होंने साफ कहा कि ‘अस्पतालों को बंद करवाने वालों के विरुद्ध आपराधिक धाराओं में केस दर्ज किए जाने चाहिए!’ कोरोना काल में यह लड़ाई भी इतनी आसान नहीं थी पर अंततः उनकी लड़ाई कामयाब रही और बीएचयू की ओपीडी खोल दी गयी. डा ओम शंकर ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि  “इतने संघर्षों के बाद आखिरकार आज से BHU की सामान्य ओपीडी शुरू हो गई, आमजनता को सेवा समर्पित। संघर्ष के सभी साथियों को साधुवाद!” आपको क्या लगता है यह लड़ाई इतनी आसान है? जी नहीं, बिलकुल नहीं यह लड़ाई बहुत ही मुश्किल है . उसी सिस्टम का हिस्सा होकर उसी सिस्टम के खिलाफ लड़ना कभी आसान नहीं रहा है. लेकिन जनता के डाक्टर की जनता के लिए लड़ाई जारी है.  वे बहुत दुखी होकर लिखते हैं कि ‘भारत में कोरोना काल का इतिहास जब लिखा जाएगा तो वर्तमान सत्ताधारियों का इतिहास काले अक्षरों से लिखा जाएगा, क्योंकि आज जब इस देश में अस्पताल बनवाने की जरूरत है तब ये लोग मंदिर बनवा रहे हैं!’ वे कहते हैं कि “पता है दसों साल, कई आमरण अनशनों और इस कोविड-19 महामारी के बाद भी ये सरकार आपके स्वास्थ के अधिकारों के प्रति क्यों नहीं जागी? क्योंकि स्वास्थ न तो सरकार की प्राथमिकताओं में कभी शामिल थी न हीं कभी आपके!”. यह एक कड़वा सच है कि स्वास्थ्य का मुद्दा न कभी चुनावी मुद्दा बन पता न तो जनता उसे मुद्दा लायक जरुरी समझती है. जबकि सबसे जरुरी मुद्दा स्वास्थ्य का मुद्दा ही है.  शायद इसीलिए डा ओमशंकर फिर लिखते हैं कि ‘जब आपको अस्पताल/स्वास्थ के अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए था तब भी आपलोग अपने अधिकारों के लिए लड़नेवाले को दलगत राजनीति का शिकार होकर अपमानित कर रहे थे और आज भी वही कर रहे हैं, जिसका खामियाजा आपको तब भी आपनों की जाने गँवाकर चुकानी पड़ी थी और आगे भी चुकानी होगी!’

इस तरह हम देखते हैं कि जनमित्र डाक्टर ओमशंकर जनता को न सिर्फ उनके अधिकारों के लिए जगाते हैं बल्कि सड़क पर उतर कर आन्दोलन भी करते हैं.


 सामाजिक न्याय का एक विचारवान, बुलंद स्वर-

 डा ओमशंकर न सिर्फ उत्तर भारत के मसहूर हृदय रोग विशेषज्ञ हैं बल्कि उनका सामाजिक चिन्तन अदभुत है. वे सोशल जस्टिस जैसे मुद्दों पर बेबाकी से लिखते और बोलते हैं. मैंने कई बार देखा है कि इनके द्वारा उठाए गए मुद्दे राजनीतिक पार्टियाँ झपट लेती हैं. डा ओम शंकर ने बीपी मंडल और मंडल कमीशन पर जितनी साफ़ दृष्टि से लिखा बोला है वह मंडल आन्दोलन को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज की तरह है. ओबीसी की स्थिति पर मंडल कमीशन से पहले और मंडल कमीशन के बाद के बदलाव को उन्होंने जिस तरह तर्कपूर्ण ढंग से  रेखांकित किया है उससे मंडल कमीशन की उपयोगिता और जरूरत दोनों बहुत साफ़ तरह से समझ में आ जाती  हैं.


  डा ओम शंकर के समाज चिन्तन का रेंज बहुत बड़ा है, उनके चिन्तन से निकलने वाली सूक्तियों पर लोगों का विशेष ध्यान नहीं के बराबर गया है.  इसलिए मैं समाज, राजनीति, धर्म, अर्थशास्त्र, चिकित्साशास्त्र जैसे जरुरी मुद्दों से जुड़ी कुछ सूक्तियों को यहाँ रख रहा हूँ जिन्हें हर व्यक्ति को देखना और बहुत गहराई से समझना चाहिए. इन एक एक सूक्तियो पर एक एक किताब लिखी जा सकती है.

 

1-जिस तर्क के आधार पर दलित,आदिवासी और पिछड़ी जातियों का पुनः वर्गीकरण होना चाहिए, उसी आधार पर हिंदू धर्म और आरएसएस का भी वर्गीकरण ब्राह्मणवादी व कर्मवादी हिंदू तथा ब्राह्मणवादी व कर्मवादी आरएसएस में क्यों नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि धर्म का अनैतिक लाभ भी तो सिर्फ एक जाति विशेष के लोग हीं उठा रहे हैं?

2- इस देश से जातिव्यवस्था कैसे खत्म हो गई है जब आज भी प्रधानमंत्री से लेकर ज्यादातर न्यायाधीशों, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, राज्यपालों, सचिवों, कुलपतियों तथा आमजनता के नामों के आगे जातिसूचक शब्द लिखे होते हैं, जतियाँ देखकर शादी-विवाह करते है, मंदिरों के पुजारी-महंथ बनाए जाते हैं, लोग आपकी जतियाँ जानने के लिए आपसे टाईटिल पूछते हैं और आरएसएस जैसे संस्थाओं के प्रमुख जाति में भी खाश उपजातियों से बनाए जाते हैं?

3- भारतवर्ष में जबतक आरएसएस जैसे जतियाँ कायम करनेवाली संस्थाएँ हैं, तबतक इस देश से जतियाँ समाप्त नहीं की जा सकती हैं!

4- निजीकरण सबसे पहले आर्थिक विषमताओं को पैदा करता है और आर्थिक विषमतायें सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, न्याययिक, शैक्षणिक, लैंगिक, भाषाई इत्यादि सभी विषमताओं की जननी है जो जातिव्यवस्था को पुनः कायम करता है! # निजीकरण मतलब जातिवाद!

5- जाति व्यवस्था एक विषमतावादी व्यवस्था है जबकि संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण कमजोर वर्गों को समान अवसर देने की व्यवस्था। इसलिए जो आरक्षण विरोधी है समझिए वो सबसे बड़ा जातिवादी है!

6- अगर सरकारी संस्थाओं को पूंजीपतियों के हाथों बेचना हीं धार्मिकता और राष्ट्रवाद है, फिर ये महान कार्य तो कोई भी कर सकता है!

7- रावण, विभीषण, इंद्र देव, ब्रह्मा जी, नारद जी, परशुराम जी ये सब के सब ब्राह्मण जाति के नायक हैं, जिनको पूजना तो दूर लोग ऐसा नाम भी नहीं रखना चाहते हैं, ऐसा क्यों?

8- फिल्म और समकालिक लेखन, समाजिक बदलाव का आईना होता है!जिसदिन इनके किरदारों में शोषित वर्ग के लोग नायक और ब्राह्मण वर्ग खलनायक की भूमिका में दिखने लगे, समझ लीजिएगा हमारा देश बदल गया है!

9= आज अगर किसी वर्ग के अधिकारों को अभिजात्य (ब्राह्मण वर्ग) खा रहा है तो वो अन्य पिछड़ा वर्ग हीं है!

10- मंडल कमीशन की पूरी रिपोर्ट्स को हर शोषितों को वैसे हीं पढ़ाया जाना चाहिए जैसे कि संविधान!

11- धर्म बिना अनुयायियों के तथा शरीर बिना जीवन के वैसे हीं अप्रासंगिक हो जाता है जैसे कि मनुष्य बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के!

12--शोषण की पराकाष्ठा से गुजर रहा बहुसंख्यक वर्ग अगर इस वक्त भी एक साथ मिलकर संघर्ष करना शुरू नहीं किये और मनुवादियों के बातों में उलझकर आपस में लड़ते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब इस देश के सभी संसाधनों पर मनुवादियों का कब्जा हो जाएगा और वो लोग सम्पूर्ण से दासता की जंजीरों में जकड़ दिए जाएंगे।.

13- किसी "व्यक्ति" को बर्बाद करनी हो तो उसे "गलत संगत" लगवा दो, किसी "समाज" को बर्बाद करनी हो तो उसे "शिक्षा से वंचित" कर दो और अगर किसी राष्ट्र को बर्बाद करनी हो तो वहाँ की जनता को "धर्म और राष्ट्रवाद" का अफीम चटवा दो!

14- भारत में दुनिया के सबसे जीवंत समाचार मीडिया उद्योगों में से एक है । देश कापहला अखबार, हिकी का बंगाल गजेट, 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिकी नाम के एक आयरिशमैन द्वारा स्थापित किया गया था ।तब से समाचार पत्रों, समाचार चैनलों और वेब प्रकाशन की संख्या बढ़ी है । लेकिन एक बात रह गई है: न्यूज़ मीडिया में सवर्ण जातियों का प्रभुत्व यूनाइटेड किंगडम में श्वेत लोगों का अधिक प्रतिनिधित्व किया जा सकता है और संयुक्त राज्य अमेरिका, लेकिन उनकी संख्या ब्राह्मणों के प्रभुत्व की तुलना में पीली है.भारतीय न्यूज़रूम्स में ब्राह्मणों की जनसंख्या - सर्वोच्च जाति समूह में भारत की पदानुक्रम जाति व्यवस्था - कुल जनसंख्या का 4 % से कम समय के लिए खाते हैं, लेकिन अंग्रेजी और भारतीय भाषा मीडिया में उनका प्रतिनिधित्व जब अन्य उच्च जातियों के साथ संयुक्त हो तो सभी पत्रकारों और संपादकों का 88 % तक उच्च बताया जाता है ।भारत में न्यूज़रूम, खासकर अंग्रेजी समाचार मीडिया पर हावी क्यों रहते हैं ब्राह्मण और अन्य जातियां, भले ही ये उच्च जातियां केवल % आबादी के बारे में ही बनती हैं? यह सवाल सिर्फ सामाजिक न्याय दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि महत्वपूर्ण है क्योंकि एक न्यूज़रूम में विविधता एक बहुत ही वास्तविक आवश्यकता है अगर हमें आशा है रिपोर्टेज जो जनता के लिए प्रासंगिक, उद्देश्य, सटीक और निष्पक्ष है - और एक समूह के हितों को दूसरे के हितों को पसंद नहीं करता है.

15- किसी भी समाज का उत्थान इस चीज पर निर्भर नहीं करता है कि उस वर्ग के कितने लोग "चतुर्थ वर्ग" के कर्मचारी हैं बल्कि इसपर निर्भर करता है कि उस वर्ग का कितना प्रतिनिधित्व लोकतंत्र के "नीति निर्धारक संस्थाओं" में मौजूद हैं!

16- मंडल आयोग लागू होने से पहले भी ग्रुप A कर्मचारियों में पिछड़े वर्ग के लोगों की कुल संख्या लगभग साढ़े आठ हजार के आसपास थी और आज भी लगभग उतना हीं है, इसकी वजहों पर तत्काल विवेचना की सख्त जरूरत है!

17- इस देश के 10% अभिजात्य वर्ग आज भी 88% मीडिया को कंट्रोल करते हैं, ज्यादातर न्यायालयों के न्यायाधीश आज भी इसी वर्ग से आते हैं, आधे से भी ज्यादा सांसद आज इसी वर्ग के हैं तथा ज्यादतर मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्यपाल, सचिव और कुलपति जैसे नीतिनिर्धारक पदों पर आज भी इसी वर्ग का कब्जा है फिर इस देश में लोकतंत्र कैसा और कैसे?  मतलब इस देश में जातिवाद मरा नहीं बल्कि उल्टे बढ़ा है!

18- न्याय पाने के लिए जितना महत्वपूर्ण ये है कि कौन व्यक्ति आपकी वकालत कर रहा है, उनका आपके समाज से कितना लगाव है और वो कितने ईमानदार हैं, उससे भी कहीं ज्यादा जरूरी ये होता है कि न्याय करनेवाले व्यक्ति की समाजिक, आर्थिक, जातीय, धार्मिक और राजनीतिक सबद्धता किस ओर है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में न्याय, न्याय करनेवाले व्यक्ति के न्यायिक चरित्र और उनके द्वारा कानून के तटस्थ और ईमानदार विवेचनाओं पर हीं निर्भर करता है!

19- ये बहुत मायने रखता है कि कौन आपकी कहानियाँ कहता है, आपकी कहानी कहनेवाला कितना ईमानदार है, उनका आपके समाज के प्रति किस तरह का और कितना लगाव है? # शोषित समाज और मीडिया!

20- चुनाव के दौरान लोभ, लालच और नफरत द्वारा अपने पक्ष में वोट डलवा लेना हीं लोकतंत्र नहीं बल्कि चुने जाने के बाद अपने/पूंजीपतियों के लिए नहीं बल्कि आम जनता के कल्याण के लिए कार्य करना लोकतंत्र है!

21- लोकतंत्र का अर्थ होता है जनता का,जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन, न कि पूंजीपतियों/कट्टरपंथियों का गुलाम नेताओं के द्वारा जनता का शोषण!

22- "लोकतंत्र" का अर्थ होता है सत्ता का "विकेंद्रीकरण" न कि निजीकरण और केंद्रीकरण जैसा कि आज इस देश में हो रहा है। व्यक्ति प्रधान केंद्रीकृत सत्ता को हीं "राजतंत्र" कहते हैं जनाब!

23- इस दुनियाँ में सबसे बड़ा विश्वास है अंधविश्वास पर विश्वास!

24- पूंजीवाद/निजीकरण/सरकारी संस्थाओं का रोज बेचा जाना/संविधान पर हमला/EWS आरक्षण/ न्यायिक प्रक्रिया का नित्य कमजोर पड़ना, इस देश को पौराणिक काल की जुल्मों-सितम के तरफ धकेल रहा है!

25-* मान दान और मतदान अपने शोषकों को कभी न करें यही शोषितों की मुक्ति का मार्ग है.*

26- इस देश को "विश्वगुरु" बनाने निकले थे धूर्तगण और "बिषगुरु" बनाकर छोड़ दिया!

27- धर्म के नाम पर दान ऊपर वाले का सबसे बड़ा अपमान है। सबसे उत्तम दान शिक्षा का दान और शिक्षा के लिए दान!

28- नई शिक्षा नीति का सार- मनुस्मृति आधारित शिक्षा व्यवस्था जो बच्चों में स्वतंत्र सोच के बदले गुलाम मानसिकता पैदा करे, जिसमें वर्णव्यवस्था की झलक शुरुआत से हीं दिखए दे, अर्थात शिक्षा का निजीकरण जो आमजनता से गुणात्मक शिक्षा का अधिकार छीनकर उच्च शिक्षा को अमीरों तक सीमित कर दे!

29- इस देश के नेता/अभिनेता/आंधभक्त/आम जनता जब बीमार पड़ते तो इलाज कराने/जान बचाने अस्पतालों में जाते, जब ठीक हो जाते तो सोना-चांदी चढ़ाने मंदिरों में जाते हैं, और चुनाव में वोट अस्पताल नहीं बल्कि मंदिर बनवानेवालों को डालते!

30- अहम और वहम, दोनों हीं मनुष्य/समाज/राष्ट्र को बर्बाद कर देता है!

31- जिस धर्म में कट्टरता हो वो धर्म नहीं हो सकता है,जिनके अंदर कट्टरता हो वो कभी धार्मिक नहीं हो सकता है!

32- पूंजीपति होते नहीं बल्कि सत्ताधारी सरकारों द्वारा बनाई जाती हैं!

33- समाजवादी राष्ट्र में समाजवाद, व्यक्तिवाद/परिवारवाद में सिमट रहा है जबकि पूंजीवाद, जाति-वर्ण-धर्म-राष्ट्रवाद के नाम पर जहर की तरह घर-घर में फैलता जा रहा है!

34- भारतवर्ष में उच्च वर्ग के बुद्धिजीवियों की शोषित वर्ग के शोषण पर चुप्पी उनके द्वारा इन वर्गों पर किया जानेवाला सबसे जघन्य हिंसा है!

35-स्वस्थ्य रहो,शिक्षित बनों, रोजगार करो व् सम्पन्न बनों .

36-अपराधी (समाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक,न्यायिक इत्यादि) -राजनीतिक गठजोड़ को खत्म किये बगैर इस देश में लोकतंत्र कायम करना असंभव है!

37- ओबीसी का वर्गीकरण, पिछड़ी जातियों को तोड़कर कमजोर करने की सत्ताधारी पार्टियों द्वारा चली जा रही सबसे घटिया खेल है जो पिछड़ों को गुलाम बना देगा!

38- इस देश की सभी जातियाँ का अपना-अपना चरित्र है जो दूसरों से भिन्न हैं। इसलिए जब कैटेगरी को तोड़कर पुनः वर्गीकृत करनी है तो जातिगत जनगणना करवाकर उसके अनुपात में सबों को आरक्षण दीजिए ताकि किसी के साथ अन्याय न हो!

39- अगर सत्ताधारी जातियाँ को सच में सबों को न्याय देनी हैं तो फिर इस देश में जातिगत जनगणना करवाकर 100% अनुपातिक आरक्षण क्यों नहीं लागू कर देती हैं!

40- सबसे ज़्यादा ओबीसी आरक्षण का लाभ लेने वाली जतियाँ आज सबसे ज्यादा अंधभक्ति में लगीं हैं जिनकी वजह से जल्द हीं ओबीसी आरक्षण खत्म हो जाएगा!

41- जैसे एक देश-एक कर प्रणाली-एक पार्टी होनी चाहिए, ठीक वैसे हीं एक देश-एक जाति (मनुष्य), एक समान शिक्षा, एक समान स्वास्थ के अधिकार और एक समान न्याय प्रणाली क्यों नहीं होनी चाहिए?

42- बीजेपी/आरएसएस के लोग वैचारिक तौर पर समानता में विश्वास नहीं रखते हैं! # इनकी पूरी विचारधारा, अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा बहुसंख्यकों के शोषण पर आधारित है।

43- न्याय तबतक अन्याय है जबतक कि उसके होने से आमलोगों को न्याय होता हुआ महसूस न हो!

44- इस देश में चरमपंथी विचारधारा के उदय और लोकतंत्र की हत्या का सबसे बड़ा गुनाहगार इस देश का "जातिवादी अन्यायालय" हीं है!😢

45- जातियाँ आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, धर्म आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, जाति-धर्म के आधार पर कुछ लोगों द्वारा बहुसंख्यकों का शोषण उनका जन्मसिद्ध अधिकार है, लेकिन उस शोषण से मुक्ति और आरक्षण आपका मौलिक अधिकार नहीं! # जातिवादी-न्यायालय!

46- सामाजिक, धार्मिक, न्यायिक, आर्थिक, शैक्षणिक और अरोग्यात्मक क्षेत्रों में महिलाओं की उचित भागेदारी सुनिश्चित किये बगैर कोई भी समाज स्वस्थ, शिक्षित, न्यायप्रिय और सुदृढ़ नहीं बन सकता!

47- इस देश में जारी आज "राईट" वनाम "लेफ्ट" की बहस को खत्म करके, एक नए बहस की जरूरत है, वो है "राईट (सही)" बनाम "रॉन्ग (गलत)" की और "न्याय बनाम अन्याय" की!

48- "हिंदू-मुस्लिम" नफरत की राजनीति मतलब "जातिवादी वर्चस्व" की आड़ में "पिछड़ों-दलितों-आदिवासियों-अल्पसंख्यकों" के अधिकारों की हत्या!

49- जिस जाति और धर्म को धारण करने में मनुष्य का कोई वश नहीं होता, पूरी जिंदगीं वो उसी को कायम रखने में बिता देते हैं!

50- मनुष्य के लिए सिर्फ जिंदा रहना हीं काफी नहीं, सम्मान के साथ जीना भी जरूरी है!

51- न्यायाधीशगण लोकतंत्र की रक्षा के लिए बिठाए गए जनता का एक नौकर मात्र हैं जिनको जनता के टैक्स के पैसों से हीं सेलेरी मिलती है जैसे कि किसी अन्य सरकारी नौकरों को! इसलिए उनका न्याय न सिर्फ विश्लेषण के दायरे में आता है बल्कि गलत निर्णयों के लिए सजा के भागीदार भी!

52- न्यायालय मंदिर नहीं और न हीं उसके अंदर बैठे न्यायाधीश महोदयगण भगवान जिनके ऊपर प्रश्न नहीं उठाए जा सकते। वो किसी गाँव, किसी जाति, किसी धर्म, किसी राजनैतिक विचारधारा से प्रेरित हो सकते हैं, जो उनके न्यायिक सोच को प्रभावित कर सकता है!

53- 70 हज़ार महीने कमानेवाले अमीरों का गैर-संवैधानिक EWS आरक्षण मौलिक अधिकार है, समाजवादी राष्ट में पूंजीवादी लूट अमीरों का मौलिक अधिकार है, शिक्षा/स्वास्थ जो हर भारतीयों का मौलिक अधिकार है उसका निजीकरण आपका मौलिक अधिकार है लेकिन वंचितों का आरक्षण उनका अधिकार नहीं!

54- जातियाँ आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, धर्म आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, जाति-धर्म के आधार पर कुछ लोगों द्वारा बहुसंख्यकों का शोषण उनका जन्मसिद्ध अधिकार है, लेकिन उस शोषण से मुक्ति और आरक्षण आपका मौलिक अधिकार नहीं! # जातिवादी-न्यायालय!

55- सामाजिक, धार्मिक, न्यायिक, आर्थिक, शैक्षणिक और अरोग्यात्मक क्षेत्रों में महिलाओं की उचित भागेदारी सुनिश्चित किये बगैर कोई भी समाज स्वस्थ, शिक्षित, न्यायप्रिय और सुदृढ़ नहीं बन सकता!

56- इस देश में जारी आज "राईट" वनाम "लेफ्ट" की बहस को खत्म करके, एक नए बहस की जरूरत है, वो है "राईट (सही)" बनाम "रॉन्ग (गलत)" की और "न्याय बनाम अन्याय" की!

57- "हिंदू-मुस्लिम" नफरत की राजनीति मतलब "जातिवादी वर्चस्व" की आड़ में "पिछड़ों-दलितों-आदिवासियों-अल्पसंख्यकों" के अधिकारों की हत्या!

58- "हिंदू" मतलब अल्पसंख्यक जातिवाद!

59- कोरोना महामारी काल्पनिक समुद्र मंथन जैसा है!इससे निकलने वाले अमृत/जहर किनके हिस्से में जायेगा ये तो अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि इसके प्रभाव/दुष्प्रभाव से कोई अछूता नहीं रहेगा!

60- ऊर्जा ने जीव को बनाया, जीवों में उत्कृष्ट जीव मनुष्य ने भगवान को बनाया, जो व्यापार का सबसे सरल वस्तु है!

61- जिस जाति और धर्म को धारण करने में मनुष्य का कोई वश नहीं होता, पूरी जिंदगीं वो उसी को कायम रखने में बिता देते हैं!

62- किसी भी देश का विकास देश के संसाधनों को बेचकर नहीं, बल्कि नए-नए औद्योगिक संयंत्रों को स्थापित करके हीं संभव हो सकता है!

63- व्यक्ति माँ के पेट से प्रतिभावान पैदा नहीं होता है, बल्कि उसको प्रतिभावान बनाया जाता है सही शिक्षा द्वारा, जैसे कि रास्ते में फेंके हुए पत्थर को भी शिल्पकार तराशकर उसे खूबसूरत मूर्ति का रूप दे देते हैं!

64- विद्वता हासिल करने के लिए विलक्षण और औसत दिमाग से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित दिमाग अथवा इंफॉर्मड या अन-इंफॉर्मड दिमाग!

65- मनुष्य का दिमाग एक अद्भुत मशीन है। इसका जितना इस्तेमाल करेंगे, उतनी हीं तेजी से ये चलेगा और जितना कम करेंगे उतना हीं जंग लगता जाएगा व कमजोर हो जाएगा!

66- स्वास्थ देश के सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इस भीषण महामारी में अस्पतालों का बंद करना देशद्रोह क्योंकि यह जीवन जीने के अधिकारों के विरुद्ध है!

67- धर्म गुलामी की एक ऐसी जंजीर है जो हमेशा उसको मानने वाले बहुसंख्यकों को अन्धभक्त बना देता है, जिसका दुरुपयोग उसके अल्पसंख्यक ठीकेदार अपनी भलाई के लिए करते हैं।

68- आजतक OBC वर्ग के साथ हमेशा अन्याय इसलिए हुआ क्योंकि इस वर्ग के नेता खुद की भलाई के लिए इस वर्ग को जतियाँ में बाँटकर सत्ताधारी दलों की चापलूसी करके बेचता रहा जो आज चरम पर है।

69- "लिब्रलाइजेशन" का अर्थ होता है कमजोर वर्गों से संविधान द्वारा प्रदत्त मूलभूत मौलिक अधिकार छीन लेना! मतलब पूंजीपति भूखे भेड़ियों के सामने निरीह वर्गों (बकरी) को शोषण के लिए परोस देना!

70- शोषण की पराकाष्ठा से गुजर रहा बहुसंख्यक वर्ग अगर इस वक्त भी एक साथ मिलकर संघर्ष करना शुरू नहीं किया और मनुवादियों के बातों में उलझकर आपस में लड़ते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब इस देश के सभी संसाधनों पर मनुवादियों का कब्जा हो जाएगा और वो लोग सम्पूर्ण से दासता की जंजीरों में जकड़ दिए जाएंगे। इसलिए इस देश के 85% लोगों को आज अपने सच्चे नायकबीपी मंडल साहब  की 102वीं वर्षगांठ पर नमन करते हुए यह कसम खानी चाहिए कि आज के बाद से वो अपने सभी आपसी मतभेदों को भुलाकर मनुवाद के विरुद्ध तबतक लड़ते रहेंगे जबतक कि उसे नेस्ता-नाबूद न कर डालें।

 

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