Saturday 22 October 2016

नागरिकता कानून में भी इजराइल की नकल!



उर्मिलेश

इजराइल जैसे बेहद विवादास्पद और धार्मिक-राष्ट्रीयता आधारित एक कट्टरपंथी मुल्क को दुनिया के सेक्युलर-लोकतांत्रिक देशों के खेमे में भारत के रूप में नया प्रशंसक मिल गया है। अब तक सिर्फ अमेरिका या उसके कुछ खास समर्थक-देश ही उसका बचाव और बड़ाई करते थे। इसके बावजूद वे संयुक्त राष्ट्र संघ में इजराल की सामूहिक निन्दा के प्रस्ताव को कई मौकों पर रोक नहीं पाते थे। इधर, अपने देश में देखते-देखते इजराइल की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। सत्ताधारी दल और उसकी अगुवाई वाली मौजूदा केंद्र सरकार को कई कारणों से इजराइल प्रिय है। इजराइली युद्ध-कौशल या दुश्मन के खिलाफ उसके आक्रामक तौर-तरीके का ही अपने यहां महिमागान नहीं हो रहा है, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्व के पेंचदार मामलों में उसकी नकल की कोशिश भी हो रही है। इसमें एक मामला है भारत के नागरिकता कानून-1955 में खास संशोधन का प्रस्ताव।
पिछले कई महीने से सत्ताधारी पार्टी की सिफारिश पर केंद्र सरकार सन् 1955 के राष्ट्रीय नागरिकता कानून में संशोधन की कोशिश कर रही है। सन 2014 के संसदीय चुनाव के दौरान भाजपा ने मतदाताओं को नागरिकता कानून में विवादास्पद संशोधन का वायदा किया था। बीते असम चुनाव के दौरान भी सत्ताधारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने नागरिकता कानून में संशोधन की बात की। असम में इस मसले का खास महत्व है। समझा जाता है कि संसद के शीत-सत्र में इसे पारित कराने की पूरी कोशिश होगी। कानूनी संशोधन का अहम पहलू है-पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी मुल्कों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिक बनकर रहने की आजादी देने का प्रावधान। अगर संशोधन कानून को संसद की मंजूरी मिल जाती है तो पड़ोस के कुछ मुल्कों से आकर पिछले 6 साल से भारत में रहने वाले हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध समुदाय के लोग बाकायदा भारतीय नागरिक बन सकेंगे। यही नहीं, भविष्य में भी पड़ोसी मुल्कों से आने वाले ऐसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिये भारतीय नागरिकता पाने का रास्ता आसान रहेगा। इसमें मुसलमानों को छोड़ अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों का बाकायदा नामोल्लेख है। यानी बाहर से आने वाले सिर्फ मुस्लिम धर्मावलंबी को नागरिकता नहीं मिलेगी।
देश के कई बड़े न्यायविद् और कुछ विपक्षी नेता इस सरकारी पहल पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। उनकी चिंता का मुख्य कारण है कि इस तरह का संशोधन भारतीय संविधान के बुनियादी स्वरूप और विचार-दर्शन से मेल नहीं खाता। यह संविधान की भावना और भारत की मूल संकल्पना के सर्वथा प्रतिकूल है। सर्जिकल स्ट्राइक जैसे सामरिक मामले की तरह नागरिकता कानून के संशोधन प्रस्ताव के संदर्भ में भले ही किसी सत्ताधारी नेता ने अभी तक इजराइल का नामोल्लेख न किया हो लेकिन जिस तरह का कानूनी संशोधन प्रस्तावित किया गया है, वह काफी कुछ इजराइल के नक्शेकदम पर है। इजराइल पूरी दुनिया के यहूदियों को अपनी धरती पर शरण देने या वहां आकर स्थायी रूप से नागरिक बनकर बसने का आह्वान करता रहता है। उसके आह्वान का असर भी देखा गया। कई मुल्कों के यहूदी वहां जाकर बसे भी हैं। भारत सरकार की तरफ से नागरिकता कानून-1955 में जिस तरह के संशोधन प्रस्तावित किये गये हैं, वे भी कुछ इसी तर्ज पर पड़ोसी मुल्कों के धार्मिक-अल्पसंख्यकों तक सीमित हैं। पाकिस्तान या बांग्लादेश के हिन्दू, जैन या सिख आदि जैसे धार्मिक अल्पसंख्यक अगर भारतीय नागरिकता लेना चाहेंगे तो कानूनी संशोधन के पारित होने की स्थिति में भारतीय नागरिकता कानून उनका पूरा साथ देगा। लेकिन म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों, अफगानी, बांग्लादेशी या पाकिस्तानी मुसलमानों को यह सुविधा नहीं मिलेगी। भारत में फिलहाल लगभग 36000 रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी की तरह रहते आ रहे हैं। इनमें ज्यादातर भारत में स्थायी निवास यानी नागरिकता चाहते हैं। लेकिन नया संशोधन पारित हो जाने की स्थिति में भी बांग्लादेशी मुसलमानों या म्यांमार  के रोहिंग्या को नागरिकता पाने का अधिकार नहीं हासिल होगा।
नागरिकता पाने की पात्रता वालों की श्रेणियां कानूनी संशोधन में साफ तौर पर उल्लिखित हैं। नागरिकता का यह कानूनी-संशोधन चूंकि धार्मिक-पृष्ठभूमि पर आधारित है, इसलिये इसकी आलोचना हो रही है। आलोचकों का मानना है कि भारत की स्थिति इजराइल से बिल्कुल अलग है। इजराइल एक धार्मिक-पृष्ठभूमि आधारित नागरिकता का देश है, जबकि भारत आज भी संवैधानिक तौर पर एक सेक्युलर-लोकतांत्रिक देश है, हिन्दू राष्ट्र नहीं है। ऐसे में धार्मिक-पृष्ठभूमि के आधार पर किसी को भारतीय नागरिकता का अधिकार कैसे दिया जा सकता है! इस तरह के भेदभाव-मूलक कानूनी संशोधन को भारत जैसे एक लोकतांत्रिक और सेक्युलर गणतंत्र में कैसे अमलीजामा पहनाया जा सकता है?
----------------------------------------------------------------------
प्रभात खबरः20अक्तूबर,16

1 comment:

  1. hamko duniya said kya MATLAB hai Jo desh hamaisa bharat ka saath diya hai hamko uskai saath rahna hai 1962,1965 1971 1999 aap bhool gayai hai kya america Saudi Arab aur isrial dono ka sathi hai air uska apna hit hai bharat ko apna hit dekhna hai arbiyo hai hamaisa Pakistan ka paisai hai saath diya hai 16 Dec 1971 kai baad jab bharti sena Kashmir mai badnai large tab arbiyo hai kyo Pakistan ka saath diya air karayvahi ko 18 Dec ko band karna pada.

    ReplyDelete

जनता का डाक्टर: जिसने विभेद से भरे हुए समाज का इलाज भी जरुरी समझा

 सुनील यादव  डाक्टर शब्द का का नाम आते ही एक ऐसे प्रोफेसनल व्यक्ति का अक्स उभरता है जो खुद के लिए बना हो. चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सक क...