Sunday, 27 September 2015

सुभाष चन्द्र कुशवाहा के कहानी संग्रह ‘लाला हरपाल के जूते और अन्य कहानियां’ पर एक पाठकीय टिप्पणी



रामप्रकाश कुशवाहा


प्रसिद्ध कहानीकार, लोकचिन्तक एवं सक्रिय साहित्यधर्मी (एक्टिविस्ट के अर्थ में ) सुभाष चन्द्र कुशवाहा का पेंगुइन से प्रकाशित सद्यःप्रकाशित कहानी संग्रह "लाला हरपाल के जूते और अन्य कहानियां" अभी कल ही अमेज़न से घर बैठे मुझे प्राप्त हुई है. उनकी इस पुस्तक में कुल तेरह कहानियां हैं.- प्रजा रानी .बनाम कउआहंकनी', भटकुइयां इनार का खजाना ', लाला हरपाल के जूते', 'पेड़ लगाकर फल खाने का वक्त नहीं, ''रमा चंचल हो गयी है', 'सब कुछ जहरीला', 'बात थी उड़ती जा रही', 'कहाँ की धरती, कहाँ का मानुष', 'जर-जमीन-जिनगी', 'फ़ांस', 'यही सब चलेगा ?', रात के अंधियारे में',  और ' केहू ना चीन्ही'.
इन कहानियों को पढ़ते हुए जिस बात नें सबसे अधिक आकर्षित किया वह है सामाजिक बदलाव के प्रति समर्पित उनकी संकल्पधर्मी जिजीविषा-एक निर्णायक बौद्दिक एवं रचनात्मक असंतोष की ईमानदार साहसिकअभिव्यक्ति...जो हिंदी के साहित्यकारों में कबीर, निराला, प्रेमचंद्र, नागार्जुन, मुक्तिबोध, धूमिल, संजीव ,शिवमूर्ति, प्रेमकुमारमणि तथा कुछ सीमित सन्दर्भों में उदयप्रकाश और विभूतिनारायण राय आदि में ही मिलती है.. मेरी दृष्टि में इन साहित्यकारों नें जिनमें सुभाष जी सम्मिलित हैं. साहित्य की कलात्मक तटस्थता का अतिक्रमण कर जीवन की सच्चाइयों का सीधे-सीधे पक्ष लिया हैं. वे अपनी रचनाओं और कहानियों में परिवर्तन की निर्णायक इच्छा और मनःस्थितियां संप्रेषित करते हैं. इनकी रचनाएँ और कहानियां अपने मानवीय समय में पूरी संवेदनशीलता और संवेगों के साथ उपस्थित होती हैं..
सुभाष चन्द्र कुशवाहा की इस नवीनतम संग्रह की कहानियां अपनी संरचनात्मक एवं विधात्मक विशिष्टता की दृष्टि से विमर्शात्मक, सम्प्रेषणधर्मी एवं लोकसंवादी हैं. उनकी अधिकांश कहानियां गुजरते समय का वृहत्तर कथा-रूपक प्रस्तुत करती हैं ..उनकी कहानियां अभिव्यक्ति के खतरे उठा कर भी सच को अपने पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास करती हैं. सही नैतिक पक्ष की प्रतिरोधी संवेदनशीलता.. जुझारू मानसिकता, अप्रिय यथार्थ के स्पष्ट अस्वीकृति का साहसिक आक्रोश तथा क्रांतिधर्मी आवेग एवं मनःस्थिति के साथ सुभाषचन्द्र कुशवाहा की कहानियां हिंदी केअभिजन कथा -साहित्य के समानांतर लोकधर्मी हिंदी कहानी की बिलकुल अलग परिकल्पना तथा संरचना का पता देती हैं.

2 comments:

  1. सुभाष चन्द्र कुशवाहा की महत्वपूर्ण कथा -कृति 'लाला हरपाल के जूते ' पर लिखी मेरी पाठकीय टिप्पणी को साहित्यिक महत्व देने एवं अपनी ब्लॉग -पत्रिका देहरी में प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद ..

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