प्रतिभा यादव
" असल में हम हिन्दी पट्टी के नहीं , बल्कि हिंग्लीश पट्टी के छात्र हैं। इसलिए न घर के हैं न घाट के।"😜
कॅालेज का पहला दिन पुरफेसर साहब कक्षा मे घुसते ही सबसे अंग्रेजी में परिचय लेने के बाद। अंग्रेजी मे लेक्चर बाँचना शुरु कर दियें। हम हिन्दी मीडियम वाले छात्र जब तक उनके मुँह से निकला एक जाना पहचाना वर्ड समझने की कोशिस करते तब तक उनका एक टॅापिक खत्म हो जाता। पुरफेसर साहब बीच -बीच में क्वेश्चन्श भी पूछे जा रहे हैं। और अंग्रेजी पट्टी वाले छात्र बड़े उत्साह के साथ उसका जवाब दिये जा रहे हैं। और हम हिन्दी पट्टी वाले छात्र एक दूसरे का मुँह ताक रहे हैं कि- आखिर क्या गिटर -पिटर हो रहा है। और कुंठित हुए जा रहे हैं। और खुद को सांत्वना दिये जा रहे हैं कि- इ पुरफेसर अगर हिन्दी मे पढाता तो नालिज तो हमारे पास भी कम नहीं है। हम भी इनके सारे क्वेश्चन्श का आंसर दे सकते थे। आखिर हम भी अपने विद्यालय के सबसे होशियार स्टुडेन्ट रह चुके हैं , ऐसे ही नहीं इण्टरमीडिएट की परीक्षा मे 78% पाये हैं। और यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा में ऐसे ही नहीं तीसरा रैंक आया है। हम हिन्दी वाले छात्र एकदम से बौरा गयें कि- आखिर हमारे साथ अन्याय हो रहा है, और यदि आज हम अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ नहीं लड़ पायें तो देश के लिए क्या खाक कुछ कर पायेंगे? तब हमलोगो ने तय किया कि नहीं हम लोग इसका विरोध करेंगे हमलोगो ने गुट बनाया और पुरफेसर साहब के पास गयें और अपनी बात रखा। उसके बाद पुरफेसर साहब ने हमें हमारी औकात से रूबरू करा दिया ।और बोले कि पहले ये बताइये कि आपलोगों मे से वो कौन होनहार है, जो एक भी शब्द अंग्रेजी का प्रयोग किये बिना हमसे दस मिनट तक बिना अटके हिन्दी में वार्तालाप कर सकता है। हमारे मुँह पर जैसे जोरो का थप्पड़ लगा हम चकरिया गयें । उस टाईम पता चला कि -असल मे हम हिन्दी पट्टी के नही हिंग्लीश पट्टी के छात्र हैं। जो कि न घर के हैं न घाट के। उसके बाद हमने कसम खायी कि- " ऐ हिन्दी! तुमसे हम अब बस अपनी बस डायरी सजायेंगे। लेकिन अंग्रेजी को किसी भी हाल मे अपने गले का हार बनायेंगे।।"
No comments:
Post a Comment