Wednesday 3 June 2015

जलसों और बयानों की किलेबंदी



उर्मिलेश

राजनेताओं की तरफ से विवादास्पद बयान पहले भी आते रहे हैं, आगे भी आयेंगे। लेकिन हाल के दिनों में सत्ताधारी नेताओं-मंत्रियों में बेतुके बयान देने की मानो होड़ सी मची है। इन बयानों का विवाद सिर्फ तर्कहीनता की वजह से नहीं, इनमें लोकतंत्र और हमारी राजनीतिक सामाजिकता का भी निषेध नजर आता है। भगवाधारी नेताओं की बात छोड़िये, पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं-केंद्रीय मंत्रियों के बयान भी निरंतर विवाद पैदा करते आ रहे हैं। हाल में मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने जिस तरह का बयान दिया, वह स्तब्ध करने वाला है। क्या लोकतांत्रिक शासन में किसी मंत्रालय के प्रभारी मंत्री से इस तरह की टिप्पणी की उम्मीद की जा सकती है? प्रियंका गांधी वाड्रा ने अमेठी-रायबरेली इलाके में प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण संस्थान जल्द खोलने की मांग की तो स्मृति ने कहा, जीते हुये लोग हारे हुये से मांग कर रहे हैं। बीते चुनाव में राहुल के मुकाबले अमेठी में हारने के बाद भी स्मृति बड़े मंत्रालय की प्रभारी मंत्री बनीं। राज्यसभा की वह पहले से सदस्य थीं। मैं न तो प्रियंका का फैन हूं न उनकी राजनीति का प्रशंसक, लेकिन उनकी शिकायती मांग पर ईरानी की टिप्पणी परेशान करती है। इसमें लोकतांत्रिक मिजाज का अभाव झलकता है। आज की तारीख में ईरानी मंत्री हैं, इसलिये राहुल या प्रियंका समेत किसी भी नेता को उनके समक्ष अपनी मांग या शिकायत रखने का अधिकार है। किसी मांग की आलोचना सिर्फ इसलिये नहीं की जा सकती कि मांग करने वाले नेता लंबे समय तक सत्ता में रहते हुये अपने क्षेत्र का अपेक्षित विकास क्यों नहीं कर सके?
सत्ताधारी दल के शीर्ष नेता की तरफ से आया दूसरा बयान देखें-बांग्लादेश से आने वाले हिन्दुओं का स्वागत है। वे शरणार्थी हैं। यही पार्टी बांग्लादेश से यहां आने वाले मुसलमानों को घुसपैठिये और आतंकीकहकर बाहर करने की बात करती रही है। सवाल है, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का उक्त बयान हमारे राष्ट्रराज्य की कैसी तस्वीर पेश करता है? क्या संविधान-संशोधन के बगैर भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र से हिन्दू राष्ट्र बन चुका है?
कुछ ही दिनों पहले देश के रक्षा मंत्री मनोहर पार्रीकर ने कश्मीर में आतंकवाद से मुकाबला करने के नये सरकारी नुस्खे का खुलासा किया। उनके बयान का लब्बोलुवाब था-कश्मीर में आतंकवादियों को खत्म करने के लिये आतंक या आतंकवादियों का सहारा लेंगे या ले रहे हैं। देश में इससे पहले भी भाजपा की अगुवाई वाली एक सरकार छह साल राज कर चुकी है। लेकिन उस दौरान भी ऐसा गैरजिम्मेदाराना बयान कभी नहीं आया। इजरायल के रक्षा मंत्री की तरफ से इस तरह का बयान आये तो बात समझी जा सकती है। क्या हमारी सरकार ने भी इजरायल की तरह अमानवीय, गैर-कानूनी और असंवैधानिक आचरण करने की ठान ली है? क्या वह उग्रवाद और आतंकवाद से निपटने में इस्तेमाल किये जाने वाले अपने तमाम तरह के हथकंडों का औपचारिक और सार्वजनिक ऐलान करने की पक्षधर हो गयी है? साफगोई कहकर कोई इसकी प्रशंसा भी कर सकता है लेकिन हमारे राष्ट्र-राज्य की अब तक की प्रतिष्ठा को क्या यह धूमिल नहीं करता? क्या यह विधान-आधारित एक सभ्य-लोकतांत्रिक शासन के बर्बर-सैन्य तंत्र में संतरण के खतरे का संकेत नहीं है? इस बात की गारंटी कौन करेगा कि ऐसे निरंकुश-सैन्य हथकड़ों का इस्तेमाल देर-सबेर सरकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोकतांत्रिक आंदोलकारियों के खिलाफ नहीं होगा?
अनेक लोगों, यहां तक कि कुछ सेक्युलर विपक्षियों ने भी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू के एक ताजा बयान पर बहुत खुशी जाहिर की। अरुणाचल-निवासी रिजिजू ने अपनी पार्टी के नेता मुख्तार अब्बास नकवी के विवादास्पद बयान को आपत्तिजनक बताते हुये(नेतृत्व से डांट खाने के बाद अब वह ना-नुकूर कर रहे हैं) कहा, मैं गोमांस खाता हूं, मैं अरुणाचल से आता हूं। क्या कोई मुझे ऐसा करने से रोक सकता है?’ रिजिजू यहीं नहीं रूके। उन्होंने बयान में यह भी जोड़ा, वैसे राज्य जहां हिन्दू बहुसंख्यक हैं, वहां गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने का कानून बना सकते हैं। इसके कुछ ही दिन पहले एक मीडिया संस्थान के समारोह में राज्यमंत्री नकवी ने गोमांस-प्रतिबंध के अपनी पार्टी के रवैये का पक्ष लेते हुये बड़े उत्तेजक ढंग से कहा,गोमांस खाने वाले पाकिस्तान चले जायं। नकवी भाजपा-नीत महाराष्ट्र सरकार द्वारा लागू किये गोमांस-प्रतिबंध को जायज ठहरा रहे थे। जिन सेक्युलरवादियों ने शुरू में किरण के बयान की तारीफ की, उन्होंने बयान के दूसरे हिस्से को शायद नजरंदाज कर दिया। क्या भारत में कानून बनाने के लिये धर्मावलंबियों की संख्या को आधार माना जायेगा? फिर यह कैसे साबित होगा कि किसी एक धर्म को मानने वाले सारे लोग एक ही तरह का खान-पान करते हैं?   सवाल यह भी उठेगा कि गोमांस-प्रतिबंध किसी पार्टी का एजेंडा है या किसी समाज या समुदाय का? गोमांस पर प्रतिबंध तो भैंस या बैल-मछड़ा मांस पर प्रतिबंध क्यों नहीं? आखिर कोई सरकार एक लोकतांत्रिक समाज में लोगों के खाने-पीने की आदतों का निर्धारण कैसे और क्यों करेगी? नकवी उन सारे लोगों को पाकिस्तान भेजने पर आमादा हैं, जो गोमांस खाते हैं या खाना चाहते हैं और रिजिजू पूर्वोत्तर राज्यों में गोमांस खाने की आजादी के साथ महाराष्ट्र में पाबंदी से सहमत हैं। यह कैसा लोकतंत्र है भाई!
26 मई को ही अमित शाह ने मंदिर और अनुच्छेद 370 पर पार्टी को दो तिहाई बहुमत की दरकार वाले विवादास्पद बयान के साथ पेयजल संकट पर एक बेतुका बयान दिया। मथुरा के जिस गांव में प्रधानमंत्री ने 25 मई को रैली की, वहां पेयजल की भारी किल्लत के बारे में पूछे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यूपी में भाजपा सरकार बनने पर दीनदयाल जी के गांव की पानी की समस्या खत्म हो जायेगी। क्या यूपी में पहले भाजपा की सरकार नहीं थी?  रामप्रकाश गुप्ता, कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह जैसे भाजपा नेता क्या यूपी में मुख्यमंत्री नहीं रह चुके हैं? दीनदयालजी का गांव तब उनकी योजना के नक्शे पर नहीं था?  क्या गुजरात और मध्य प्रदेश के गावों में पेयजल संकट हल कर लिया गया है? गुजरात के विकास माडल में तो कई शहर भी जलसंकट से ग्रस्त हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा के बड़े नेता इन दिनों जमीनी काम के बजाय बयानों की किलेबंदी से अपनी सत्ता को चाकचौबंद करना चाहते हैं। विवादास्पद बयानों की किलेबंदी का सबसे शीर्ष गुम्बद है-दक्षिण कोरिया के सोल में दिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हास्यास्पद बयान। उन्होंने प्रवासी भारतीयों के बीच फरमाया अब से पहले भारत में पैदा होने वाले लोग शर्म महसूस करते थे कि कहां पैदा हो गये! अब भारतीय होने में लोग गर्व महसूस कर रहे हैं।
सरकार के पहले साल को पार्टी और उसके शीर्ष नेताओं ने जिस तरह महा-घटना के रूप में पेश करके महा-कवरेज का प्रबंधन किया, उससे साफ जाहिर है कि पार्टी और सरकार का ध्यान ठोस काम पर कम, अपनी मार्केंटिंग और आक्रामक प्रचार पर ज्यादा है। आजादी के बाद अनेक सरकारों ने अपने पहले साल पूरे किये और कइयों ने पहले साल में कई बड़े काम भी किये पर पहले साल को इस तरह राष्ट्रीय उत्सव में बदलकर महा-कवेरज का प्रबंध-कौशल शायद ही किसी के पास था! नेहरू-शास्त्री-इंदिरा-राजीव-वीपी-मनमोहन की बात छोड़िये, वाजपेयी-नीत एनडीए सरकार सहित किसी सरकार के एजेंडे में बयानों की ऐसी किलेबंदी और जलसे शामिल नहीं थे। क्या जलसों और बयानों से बदलेगा भारत?

संपर्क-urmilesh218@gmail.com
(प्रभात खबर-28,मई15 से साभार)

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